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जज की मजबूरी लेखनी प्रतियोगिता -02-Feb-2024


        शीर्षक:-जज की मजबूरी

       यह कहानी एक सत्य  घटना पर आधारित  है।

            डोरबेंल की आवाज  सुनकर  मालती ने दरवाजा खोला। दरवाजा खुलते ही मधुर सक्सेना अन्दर  आये ।

     मधुर ने देखा कि अन्दर  बिल्कुल  शान्ति है कोई  सदस्य  किसी से बात  नहीं कर रहा है। मधुर का दोस्त जज हरिकृष्ण  सबसे अलग बैठा है। जब कि उनकी पत्नी मालती व उनकी  दोनों बेटियां एक साथ  बैठी हैं। मालती के सामने एक मेज पर कुछ  कागज  भी बिखरे पड़े  हैं। मधुर की समझ में कुछ  नही आरहा था कि यहाँ क्या चल रहा है? और मालती ने उसे फोन करके क्यौ बुलाया हैं?

     "भाभी जी नमस्कार!  ऐसा क्या हुआ है  जो इतनी रात को मुझे यहाँ फोन करके बुलाया है? आप सभी चुपचाप  क्यौ बैठे हो?"

      "भाई साहब  मैं क्या बताऊँ? यह आप अपने भाई साहब  से ही पूछो कि उनको क्या होगया कि वह मुझसे इस उम्र  में तलाक  लेना चाहते हैं?", इतना कहकर  मालती ने तलाक के पेपर मधुर की तरफ बढ़ा दिए।

      मधुर यह सब सुनकर  अचम्भित रह गया। वह मन ही मन सोचने लगा कि ऐसा कैसे हो सकता है? क्यौकि हरि का अच्छा पढा़ लिखा परिवार  है हरि एक जज है  मालती भाभी एक समाज सेविका है ऐसा क्या हुआ  जो बात तलाक  तक पहुँच  गई।

       "हरि भाई मैं यह क्या सुन रहा हूँ? ऐसा क्या हुआ  जो नौबत  तलाक तक पहुँच  गई?"

    इतना सुनकर जज साहब  बच्चौ की तरह  सुबक  सुबक रोने लगे।
      "मधुर  भाई  मुझसे क्या पूछते हो यह सब मालती की इच्छानुसार  ही हो रहा है। वह मुझसे  व मेरी माँ से छुटकारा पाना चाहती है। मालती मेरी माँ से बात नहीं करती थी मेरी बेटियां भी उनके पास नहीं जाती थी। नौकर ही उनको खाने देकर आता था। मैं जब शाम को आता तब वह मुझसे कहती थी कि मुझे बृद्धाश्रम  में छोड़ दो जिससे बहू सुखी हो जायेगी। इसीलिए  मै आज से तीन दिन पहले अपनी सत्तर  साल की बूढ़ी  माँ को उस बृद्धाश्रम  में छोड़कर  आया हूँ जहाँ उसको कोई  जानता नहीं है। उसका कोई  अपना नहीं हैं। मधुर  मैने अपने पिता को नहीं देखा मुझे मेरी माँ ने ही पाला है। जब मेरी माँ को मेरे ताऊ ने घर से निकाल  दिया था तब मेरी माँ ने लोगौ के घर में काम करके मुझे पाला व इस काबिल बनाया। आज जिस ऐसी अभागिन  माँ का बेटा जज हो और वह माँ बृद्धाश्रम  में रहे। मेरे ऐसे जज होने का क्या फायदा कि मैं अपने ही घर में न्याय  नहीं कर  पारहा हूँ? इसीलिए  मैने तलाक  देने का फैसला लिया है। मै मालती व बच्चौ को पूर्ण  आजादी देरहा हूँ और मेंने सारी सम्पति  मालती के नाम करने का फैसला किया है इसके बाद मैं अपनी माँ के साथ  बृद्धाश्रम  में ही रहूँगा । इससे दो फायदे होंगे पहला माँ की सेवा दूसरा मुझे बृद्धाश्रम  में रहने की आदत  हो जायेगी।" इतना कहकर  हरि बुरी तरह फूट फूट कर रोने लगा।

     मधुर  ने इशारा करके चाय बनबाई और हरि के सामने रखते हुए  बोला," हरि चाय पीलो? सब ठीक हो जायेगा?"

      "क्या खाक ठीक होजायेगा? मालती को पूछो कि इसकी बेटी एक दिन स्कूल से लेट आई तब इसने उसके लिए  कितना हंगामा किया था। मेरी माँ का मुझे देखे बिना तीन दिन से क्या हाल होगा? अब मैं चाय अपनी माँ के साथ  ही पीऊँगा ।"

       मधुर  सब को लेकर  बृद्धाश्रम  गया और उसने बहुत  कठिनाई  से दरवाजा खुलवाया और माँ से मिलकर  उनको घर लेकर जाने की बात  कही। इसपर बृद्धाश्रम  का अटेंडेंट  भड़ककर बोला," नहीं मैं रात में उनको आप लोगों के साथ बाहर नहीं भेज  सकता हूँ आपका क्या आपने उनको मारकर नदी नाले में फेक दिया तब उसका जिम्मेदार  कौन होगा?"

    वह अटेंडेंट  बहुत ही कठिनाई  से माँ को उनके  साथ  भेजने के लिए  तैयार  हुआ।  जब वह माँ के कमरे पहुँचे तब वहाँ दृश्य  बहुत  ही भाव बिभोर  करने वाला था। हरि की माँ परिवार  की एक तस्वीर  को छाती से लगाकर  सोरही थी।

      हरि ने माँ को जगाकर  कहा," माँ मालती तुम्हें घर लेजाने आई है।माँ की आँखौ से गंगा जमुना की धारा बहने लगी । मालती माँ के चरणौ में गिरकर  रोने लगी। माँने अपनी बहू को अपनी बेटी की तरह अपनी छाती से लगा लिया।

      इसके बाद  माँ को लेकर  घर आगये।

आज की दैनिक  प्रतियोगिता हेतु।
नरेश शर्मा " पचौरी "

        

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4 Comments

Milind salve

05-Feb-2024 02:36 PM

Nice

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Punam verma

03-Feb-2024 08:57 AM

Very nice👍

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Gunjan Kamal

02-Feb-2024 04:44 PM

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति 👏👌🙏

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